सियाराम सोनकर, सुमेश साहू, सुखराम वर्मा, शेरसिंह ठाकुर, पंकज टांक,
टेकराम देवांगन, सुरेन्द्र बेलचंदन, अभीजित अग्रवाल, शरद जोशी, गुलाब बघेल,
गंगाराम साहू, खोरबाहरा चुरेंद्र... इस सूची में और भी कई नाम हैं जो महज नाम नहीं
मिसाल हैं। ये सभी छत्तीसगढ़ के नई पीढ़ी के किसान हैं। इन्होंने खेती के नए
तौर-तरीके अपनाएं, कृषि विभाग की सलाह ली, उनकी योजनाओं व शासन द्वारा दिए जा रहे
अनुदानों का फायदा उठाया और खेतों में मेहनत कर सफलता की नई कहानियां लिखी। खेती
को घाटे का सौदा मानने वालों को इन्होंने झुठला दिया। अब छत्तीसगढ़ के प्रगतिशील
किसान उन्नत और आधुनिक खेती कर खुशहाली और समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं।
12 वर्षों के सफर में प्रदेश ने हर क्षेत्र में सफलता और उपलब्धियां
हासिल की है। खेती की बढ़ती लागत से घाटे के व्यवसाय की ओर उन्मुख कृषि क्षेत्र अब
किसानों की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। खेती की लागत कम करने और किसानों
की उपज का पूरा दाम देने का सरकार का लगातार प्रयास अब रंग ला रहा है। किसानों के
आर्थिक-सामाजिक उन्नयन के लिए इस साल अलग से कृषि बजट लाने के बाद सरकार पैदावार
बढ़ाने और खेती को लाभदायक व्यवसाय बनाने के लिए नई कृषि बनाने में जुटी हुई है।
यह छत्तीसगढ़ के संवेदनशील और किसान हितैषी सरकार के फैसलों, योजनाओं एवं यहां के
किसानों की मेहनत का ही प्रतिफल है कि वर्ष 2010-11 में सर्वाधिक चावल उत्पादन के
लिए प्रदेश को कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ। प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह ने
किसानों का एक-एक दाना खरीदने का वादा निभाया और इस साल 60 लाख मीट्रिक टन धान
समर्थन मूल्य पर खरीदा गया। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के मामले में छत्तीसगढ़ इस
साल पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर रहा।
बीते एक दशक में प्रदेश में किसानों की बेहतरी के लिए कई काम हुए हैं।
खेती की महत्ता स्थापित करने के लिए सरकार ने इस साल से अकती (अक्षय तृतीया) को
बीज दिवस और हलषष्ठी को किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। उन्नत और
संकर बीज की व्यवस्था, सिंचाई के साधनों का विकास, खाद व कीटनाशकों की समय पर
उपलब्धता, विभिन्न कृषि कार्यों के लिए यंत्रों की उपलब्धता सुनिश्चित करने कृषि
सेवा केंद्रों की स्थापना व अनुदान की व्यवस्था एवं मंडियों में किसानों की उपज का
पूरा दाम देने के समुचित प्रबंध ने प्रदेश में खेती-किसानी की तस्वीर बदलकर रख दी
है। सरकार के इन सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि धान के कटोरे की फीकी पड़ती
चमक अब लौटने लगी है और किसानों का चेहरा दमकने लगा है।
खेती की लागत कम कर किसानों की आमदनी बढ़ाने और कृषि एवं कृषकों के
विकास के लिए सरकार ने इस साल पहली बार अलग से कृषि बजट पेश किया। श्री पद्धति से
धान उत्पादन, कृषि सेवा केंद्रों की स्थापना, सूक्ष्म सिंचाई योजना, वनग्रामों के
पट्टाधारी किसानों को निःशुल्क प्रमाणित बीज, उर्वरक मिनीकिट प्रदाय और भूमि सुधार
के लिए हरी खाद के उपयोग जैसी नवीन योजनाएं इस वर्ष शुरू की गई हैं। इसके अलावा
कृषि बजट में वर्ष 2011-12 में खरीदे गए धान में 50 रूपए प्रति क्विंटल का बोनस,
एक प्रतिशत वार्षिक ब्याज में अल्पकालिक कृषि ऋण, पंप कनेक्शन के लिए 75,000 रूपए
तक अनुदान, सिंचाई पंप में मीटर किराया एवं फिक्स चार्ज की समाप्ति और 700 नए
उर्वरक गोदामों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। कृषि ऋण पर एक प्रतिशत ब्याज दर
लागू होने के बाद चालू खरीफ मौसम में प्रदेश के किसानों ने 1,333 सहकारी समितियों
से 1,580 करोड़ 62 लाख रूपए का ऋण उठाया है।
कृषि विभाग की कृषक कल्याणकारी योजनाओं और किसानों को शासन के विभिन्न
कार्यक्रमों के तहत मिल रहे अनुदानों ने प्रदेश में खेती के लिए सकारात्मक माहौल
तैयार किया है। इस साल धान, मक्के और सोयाबीन की बुआई उम्मीद से ज्यादा रकबे में
हुई है। छत्तीसगढ़ बनने के पूर्व और इसके बाद के कृषि से संबंधित आंकड़ों की तुलना
करें तो प्रदेश में किसानों को मिल रही सुविधाओं और कृषि के लिए विकसित अधोसंरचना
में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई देता है। वर्ष 2000 में जहां किसानों को कृषि ऋण 14
प्रतिशत की दर पर मिलता था वही अब मात्र एक प्रतिशत ब्याज पर उपलब्ध है। राज्य
बनने के समय प्रदेश के किसान केवल 150 करोड़ रूपए का ऋण ले रहे थे जो अब बढ़कर
1500 करोड़ रूपए तक जा पहुंचा है।
बीते एक दशक में सिंचाई सुविधाओं में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
वर्ष 2000 में सिंचाई पंपों की संख्या 72,400 थी। आज छत्तीसगढ़ में 2,90,000 पंप
खेतों में सिंचाई के लिए स्थापित है। महंगी बिजली और इसमें अनियमित कटौती की वजह
से किसान अपने पंपों का भरपूर उपयोग नहीं कर पाते थे। इस दिक्कत को दूर करते हुए
अब किसानों को चौबीसों घंटे निर्बाध बिजली मुहैया कराई जा रही है। किसानों पर
बिजली बिल का ज्यादा बोझ न पड़े इसके लिए उन्हें 7,000 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जा
रही है। वर्ष 2000 में जहां प्रदेश का सिंचित रकबा 23 प्रतिशत था वहीं अब 33
प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जा चुका है। धान और गेहूं
जैसे परंपरागत फसलों के साथ-साथ अब छत्तीसगढ़ के किसान गन्ना और साग-सब्जियों जैसी
नगदी फसलों की खेती भी करने लगे हैं। वर्तमान में प्रदेश में तीन सहकारी शक्कर
कारखाने कवर्धा, बालोद और सरगुजा में स्थापित हैं। गन्ना किसान अपनी फसल इन
कारखानों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार खेती के आधुनिक तौर-तरीके
अपनाने पर जोर दे रही है। किसानों के लिए संकर एवं उन्नत बीज की व्यवस्था, सिंचाई
सुविधाओं का विकास, समय पर खाद और दवाईयों का प्रबंध, मजदूरों की समस्या से निपटने
के लिए उन्नत कृषि यंत्रों एवं उपकरणों की खरीदी में अनुदान, एक प्रतिशत ब्याज पर
कृषि ऋण, खेती की लागत कम करने के लिए नाडेप खाद, वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल और
जैविक खेती को बढ़ावा देने जैसी अनेक अभिनव योजनाओं ने किसानों को खेती के अनुकूल
माहौल प्रदान किया है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किसानों के प्रति अपनी चिंता हर मौके पर
जाहिर की है। कृषि ऋण का ब्याज दर 15 प्रतिशत से घटाते-घटाते सरकार अब इसे एक
प्रतिशत तक कर चुकी है। स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर सरकार ने प्रदेश के 90 हज़ार
लघु और सीमांत किसानों की कर्ज माफी का ऐलान कर उन्हें बड़ी राहत दी है। फसल बीमा
के प्रीमियम अनुदान को पांच प्रतिशत से 20 प्रतिशत बढ़ाने से बड़ी संख्या में लघु
और सीमांत किसानों को फसल बीमा का लाभ मिलेगा। प्रदेश में खेती और किसानों की
बेहतरी के लिए उठाए गए ये कदम किसानों के प्रति सरकार की संवेदनशीलता बयां करती है।
शासन की कृषि और किसानोन्मुखी योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ उठाकर प्रदेश के
किसान समृद्धि और खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं।
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