Tuesday 16 July, 2013

छत्तीसगढ़ में फल-फूल रहा है मछली पालन व्यवसाय

छत्तीसगढ़ में मछली उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2012-13 में प्रदेश में दो लाख 55 हजार मीटरिक टन से अधिक मछली का उत्पादन हुआ है। मछली उत्पादन के मामले में पूरे देश में छत्तीसगढ़ अब छठवें स्थान पर पहुंच गया है। राज्य गठन के समय यहां मछली का सालाना उत्पादन मात्र 93 हजार मीटरिक टन था। बीते 12 वर्षों में प्रदेश में मछली उत्पादन में औसत वार्षिक वृद्धि दर 14 फीसदी से अधिक रही है। यही कारण है कि राज्य निर्माण के 12 बरस बाद ही छत्तीसगढ़ देश के प्रमुख मछली उत्पादक राज्यों में शुमार हो गया है। वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिए कुल पौने तीन लाख मीटरिक टन से अधिक मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इनमें से दो लाख 65 हजार मीटरिक टन मछली निजी तालाबों से, करीब नौ हजार मीटरिक टन सिंचाई जलाशयों से और एक हजार 200 मीटरिक टन राज्य की नदियों से पकड़े जाएंगे। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में अभी करीब 59 हजार तालाबों, लघु, मध्यम और बड़े आकार के एक हजार 760 सिंचाई जलाशयों और साढ़े तीन हजार से भी अधिक लंबे नदी क्षेत्र में मछली पालन का काम हो रहा है।

मछली पालन कम लागत और मेहनत में अधिक मुनाफा देने वाला धंधा है। आमदनी के साथ-साथ यह परिवार की प्रोटीनयुक्त भोजन की जरूरत भी पूरी करता है। मछली पालन के व्यवसाय में लगा व्यक्ति अपने साथ कई और लोगों को भी रोजगार प्रदान करता है। मछली की बढ़ती मांग और इसके लगातार बढ़ते बाजार के कारण इस धंधे में मुनाफे की अच्छी संभावना है। प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वर्तमान में छत्तीसगढ़ के करीब दो लाख 10 हजार लोग इस धंधे में लगे हुए हैं। मछली पालन के माध्यम से अभी प्रदेश में हर साल लगभग एक करोड़ 42 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हो रहा है। जबकि दस वर्ष पहले इस व्यवसाय में सालाना केवल 63 हजार मानव दिवस रोजगार का सृजन हो पाता था।

मछली पालन को बढ़ावा देने, इसका उत्पादन बढ़ाने और इस कार्य में लगे लोगों के कल्याण के लिए छत्तीसगढ़ शासन हरसंभव मदद मुहैया करा रही है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए शासन द्वारा निःशुल्क दुर्घटना बीमा किया जाता है। इसके अंतर्गत बीमित मछुआरे की दुर्घटनावश मृत्यु अथवा स्थाई अपंगता पर एक लाख रूपए और अस्थाई अपंगता पर 50 हजार रूपए की सहायता राशि प्रदान की जाती है। प्रदेश का मछली पालन विभाग इस योजना का लाभ अधिक से अधिक मछुआरों तक पहुंचाने में सक्रियता के साथ लगा हुआ है। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान प्रदेश के एक लाख 60 हजार मछुआरों का दुर्घटना बीमा कराया गया था। बीमित मछुआरों की संख्या के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में तीसरे स्थान पर है।  

राष्ट्रीय मछुआरा कल्याण कार्यक्रम के तहत मछुआरों के लिए आवास योजना शुरू की गई है। इसके तहत आवास निर्माण के लिए शासन द्वारा मछुआरों को 50 हजार रूपए की आर्थिक मदद दी जा रही है। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान 200 मछुआरों को मकान बनाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। मछलियों का प्रजनन काल होने की वजह से प्रतिवर्ष 15 जून से 15 अगस्त तक मत्स्याखेट पर प्रतिबंध रहता है। इस दौरान मछुआरों को होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए तीन महीने तक प्रति माह 600 रूपए की आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके लिए 1200 रूपए का अंशदान शासन द्वारा दिया जाता है। जबकि मस्त्याखेट के नौ माह के दौरान कुल मात्र 600 रूपए का अंशदान हितग्राही से लिया जाता है।

मछली पकड़ने के लिए नाव, जाल और अन्य उपकरणों की खरीदी के लिए भी विभाग द्वारा आर्थिक मदद दी जाती है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत मछली पालन के लिए दीर्घकालीन पट्टाधारी मछुआरों को नाव और जाल की खरीदी के लिए 25 हजार रूपए प्रदान किए जाते हैं। मछुआ सहकारी समितियों को भी नाव, ड्रेग नेट एवं गिल नेट खरीदने के लिए एक लाख रूपए की आर्थिक मदद दी जाती है। वर्ष 2012-13 में इसके अंतर्गत 150 मछुआ समितियों और 200 मछुआरों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। इसी तरह मत्स्य पालन प्रसार योजना के तहत नाव और जाल खरीदने के लिए मछुआरों को दस हजार रूपए दिए जाते हैं। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान 533 मछुआरों को इस योजना के तहत सहायता दी गई थी। पंजीकृत मछुआ सहकारी समितियों को मछली पालन उपकरण और तालाब पट्टा, मछली बीज, नाव और जाल खरीदने के लिए तीन वर्षों की अवधि में 25 हजार रूपए तक की आर्थिक मदद भी विभाग द्वारा प्रदान किया जाता है। इसके अंतर्गत गत वित्तीय वर्ष में 97 मछुआ सहकारी समितियों को आर्थिक मदद दी गई थी। हाट-बाजारों और गली-मोहल्लों में घूमकर मछली बेचने वाले मछुआरों को आइस-बॉक्स और तराजू-बॉट खरीदने के लिए छः हजार रूपए तक की आर्थिक मदद भी विभाग प्रदान करता है। इसके अंतर्गत 2012-13 में 340 मछुआरों को राशि दी गई है। 

मछली बीज के उत्पादन में अब छत्तीसगढ़ न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि पड़ोसी राज्यों को भी इसकी आपूर्ति करता है। मत्स्य बीज उत्पादन के मामले में छत्तीसगढ़ का देश में पांचवां स्थान है। वर्ष 2012-13 में यहां लक्ष्य से अधिक कुल 10 हजार 437 मानक फ्राई मछली बीज का उत्पादन हुआ है। राज्य गठन के समय मछली बीज की जरूरत के लिए छत्तीसगढ़ दूसरे राज्यों पर निर्भर था। पिछले 12 वर्षों में शासकीय एवं निजी क्षेत्रों में 20 नए हैचरी प्रक्षेत्रों की स्थापना हुई है, जिसके फलस्वरूप राज्य इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया है। मत्स्य कृषकों को उच्च गुणवत्ता के मछली बीज अब स्थानीय स्तर पर ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। 

पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ में मछली की उत्पादकता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। यहां के तालाबों और सिंचाई जलाशयों में मछली की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है। प्रदेश में तालाबों की उत्पादकता सालाना दो हजार 972 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत केवल दो हजार 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वार्षिक है। छत्तीसगढ़ में सिंचाई जलाशयों की औसत उत्पादकता राष्ट्रीय औसत के ढाई गुने से भी अधिक है। यहां के सिंचाई जलाशयों की औसत उत्पादकता सालाना 185 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत मात्र 69 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वार्षिक है।

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